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________________ गृहस्थ जीवन १८९ अवश्य कुछ लिखा है, ' पर दिगम्बराचार्य जिनसेन की तरह विशद रूप से नहीं । यहाँ यह स्पष्टीकरण कर देना आवश्यक है कि वर्णव्यवस्था की संस्थापना वृत्ति और ग्राजीविका को व्यवस्थित रूप देने के लिए थी, न कि ऊँचता व नीचता की दृष्टि से । मनुष्य जाति एक है । केवल ग्राजीविका के भेद से वह चार प्रकार की हो गई है जूतसंस्कार से ब्राह्मण, शस्त्रधारण से क्षत्रिय, न्यायपूर्ण धनार्जन से वैश्य और सेवावृत्ति से शूद्र । ११० कार्य से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र होते हैं । 191 आचार्य जिनसेन के मन्तव्यानुसार सम्राट् श्री ऋषभदेव ने स्वयं अपनी भुजात्रों में शस्त्र धारण कर मानवों को यह शिक्षा प्रदान की कि तताइयों से निर्बल मानवों की रक्षा करना शक्तिसम्पन्न व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य है । श्री ऋषभदेव के प्रस्तुत ग्राह्वान से कितने ही व्यक्तियों ने यह कार्य स्वीकार किया । वे क्षत्रिय नाम से पहचाने गये । ११२ १०६. अथवा ब्राह्मण क्षत्रिय-वैश्य शूद्रभेदात् तत्र - 'ब्राह्मणा ब्रह्मचर्येण, क्षत्रियाः शस्त्रपाणयः, कृषिकर्मकरा वैश्याः शूद्राः प्रेक्षणकारकाः ।' - कल्पलता समय सुन्दर गणी पृ० १६६ (ख) पउमचरियं विमलसूरि उ० ३ गा० १११-११६ (ग) पश्चाच्चतुर्वर्णस्थापनं कृतम् - कल्पद्र ुम कलिका० लक्ष्मी० पृ० १४४ जातिनामोदयोद्भवा 1 ११०. मनुष्यजातिरेकैव ८५ वृत्तिभेदाहिताद्भेदाच्चातुर्विध्यमिहारनुते ॥ ब्राह्मणा व्रतसंस्कारात् क्षत्रियाः शस्त्रधारणात् । वणिजोऽर्थार्जनान्याय्याच्छूद्रा न्यग्वृत्तिसंश्रयात् ॥ १११. कम्मुणा बंभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ । asसो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा || -- महापुराण श्लोक० ४५-४६ पर्व ० ३८ पृ० २४३ दि० भा० Jain Education International ११२. स्वदोर्भ्यां धारयन् शस्त्रं क्षत्रियानसृजद् विभुः । क्षतत्राणनियुक्ता हि क्षत्रियाः शस्त्रपाणयः । -- उत्तराध्ययन २५।३३ - महापुराण २४३।१६।३६८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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