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________________ ८४ ऋषभदेव : एक परिशीलन पशुओं का उपयोग प्रारम्भ किया।१०६ जीवनोपयोगी प्रवृत्तियों का विकास कर जीवन को सरस, शिष्ट और व्यवहार योग्य बनाया। वर्णव्यवस्था ____ यौगलिकों के समय में वर्ण-व्यवस्था नहीं थी। सम्राट् श्री ऋषभदेव ने क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन तीन वर्गों की स्थापना की। यह वर्णन आवश्यक नियुक्ति, आवश्यक चूणि, आवश्यक मलयगिरि वृत्ति, आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति, विषष्ठिशलाका पुरुषचरित्र-प्रभृति श्वेताम्बर ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से नहीं है । परवर्ती विज्ञों ने उस पर (ख) प्रजापतिर्यः प्रथमं जिजीविषुः । शशास कृष्यादिषु कर्मसु प्रजाः ।। -वृहत्स्वयम्भू स्तोत्र, समन्तभद्राचार्य १०६. आसा हत्थी गावो गहिआई रज्जसंगहनिमित्त । चित्त ण एवमाई चउव्विहं संगहं कुणइ ।। __-आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति गा० २०१ पृ० १२८ १०७. कलाद्य पायेन प्राप्तसुखवृत्तिकस्य चौर्यादिव्यसनासक्तिरपि न स्यात्, कर्माणि च कृषिवाणिज्यादीनि जघन्यमध्यमोत्कृष्टभेदभिन्नानि, त्रोण्येतानि प्रजाया हितकराणि निर्वाहाभ्युदयहेतुत्वात् जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-वृत्ति, २ वक्षस्कार (ख) पहुणा उ देसियाई सव्वकलासिप्पकम्माई -आवश्यक नियुक्ति० गा० २२६ (ग) अन्यदा सुखमासीनं पुरु नाभिप्रचोदिताः ।। उपतस्थुः प्रजाः सर्वा जीविकोपायमीप्सवः ।। कि नाथ करवामेति स्थिता वीक्ष्यानुकम्पया ।। प्रजाभ्यो दर्शयामाश कर्मशिल्पकलागुणान् ।। -पुराणसार १५-१६।३।३६ १०८. उत्पादितास्त्रयो वर्णाः तदा तेनादिवेधसा । क्षत्रियाः वगिजः शूद्राः क्षतत्राणादिभिगुणः ।। -~~महापुराण १८३।१६।३६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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