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अमरता का घोष
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की
इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि की ज्वालाएँ जला नहीं सकतीं, जल धाराएँ उसे भीगो नहीं सकतीं, तेज हवाएं सुखा नहीं सकतीं ।
यह आत्मा की अमरता का शाश्वत घोष, जीवन की अनन्त निर्भयता का मूल मंत्र है । अभय और अनासक्ति का राजपथ है ।
एक बार भिक्ष, पूर्ण तथागत के पास आकर सूना परांत जनपद (अनार्य प्रदेश) में जाने की अनुमति मांगने लगे ।
तथागत ने पूछा- वहां के लोग तुझे कटुवचनों से त्रस्त करेंगे तो ?
मैं समझू गावे भले हैं, क्योंकि मुझ पर हाथ नहीं उठा रहे हैं । थप्पड़-घू से तो नहीं मार रहे हैं । यदि हाथ उठाकर पीड़ा देंगे तो....?
सहस्र - सहस्र उसके रस को
मैं उन्हें सत्पुरुष समभूभूंगा, चूंकि वे मुझे डंडों से नहीं पीट रहे हैं ।
यदि ऐसा भी हुआ तो ?
तो मैं मानूंगा वे दयालु हैं, क्योंकि कम से कम शस्त्र - प्रहार तो नहीं करते ।
यदि वे शस्त्र प्रहार ही करें तो ?
भंते ! वे कम-से-कम मुझे मार तो नहीं रहे हैं ? मैं उनकी कृपा मानगा ।
" पूर्ण ! यदि वे तुम्हारा वध कर डालेंगे तो ?”
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