SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमरता का घोष ७३ की इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि की ज्वालाएँ जला नहीं सकतीं, जल धाराएँ उसे भीगो नहीं सकतीं, तेज हवाएं सुखा नहीं सकतीं । यह आत्मा की अमरता का शाश्वत घोष, जीवन की अनन्त निर्भयता का मूल मंत्र है । अभय और अनासक्ति का राजपथ है । एक बार भिक्ष, पूर्ण तथागत के पास आकर सूना परांत जनपद (अनार्य प्रदेश) में जाने की अनुमति मांगने लगे । तथागत ने पूछा- वहां के लोग तुझे कटुवचनों से त्रस्त करेंगे तो ? मैं समझू गावे भले हैं, क्योंकि मुझ पर हाथ नहीं उठा रहे हैं । थप्पड़-घू से तो नहीं मार रहे हैं । यदि हाथ उठाकर पीड़ा देंगे तो....? सहस्र - सहस्र उसके रस को मैं उन्हें सत्पुरुष समभूभूंगा, चूंकि वे मुझे डंडों से नहीं पीट रहे हैं । यदि ऐसा भी हुआ तो ? तो मैं मानूंगा वे दयालु हैं, क्योंकि कम से कम शस्त्र - प्रहार तो नहीं करते । यदि वे शस्त्र प्रहार ही करें तो ? भंते ! वे कम-से-कम मुझे मार तो नहीं रहे हैं ? मैं उनकी कृपा मानगा । " पूर्ण ! यदि वे तुम्हारा वध कर डालेंगे तो ?” Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003185
Book TitleKhilti Kaliya Muskurate Ful
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy