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अमरता का घोष कहावत है-"भय की सीमा मृत्यु है।"
मृत्यु सबसे भयानक है, चूकि मनुष्य अपने देह से, प्राणों से और जीवन से मोह करता है, मृत्यु देह को प्राणों से विलग करती है, इसलिए मनुष्य मृत्यु से डरता है।
जिसके दर्शन में प्राणों की अमरता समाई हुई है, जीवन की अनन्त शाश्वतता का मधुरस छलक रहा हैउसे मृत्यु से क्या डर ! वह तो मृत्यु के त्रासदायी क्षणों में भी आनन्द में झूम कर गाता है
नत्थि जीवस्स नासु त्ति-. शरीर का नाश है, पर जीव का, आत्मा का नाश नहीं, वह अविनाशी, अक्षर अजर है।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नेनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।।
१ उत्तराध्ययन २।२७ २ गीता २।२३
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