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________________ ६८ अनुश्रुत श्रुतियाँ स्याम् किं तेन कुर्याम् ?" जिस धन से मैं अमरता की उपलब्धि नहीं कर सकता, उसे पाकर भी क्या करू ? मुझे भी वही धन चाहिए जो अमृतत्व दे सके, अक्षय अजर आनन्द दे सके, और जिसे पाकर इस धन का लालसा मन से सर्वथा क्षीण हो जाये ।” एक लोक कथा है। एक संत नदी के शांत तीर पर स्थित प्रज्ञ से ध्यान लीन खड़े थे । एक दरिद्र ब्राह्मण धन के लिए दर-दर भटकता हुआ संत के चरणों में पहुचा - "भगवन् ! मैं दीन-हीन प्राणी धन के अभाव में दर-दर भीख मांग रहा हूँ, भूख से बाल बच्चे विलख रहे हैं, दरिद्रता से प्रताडित मेरा जीवन सर्वथा दुःखमय हो रहा है ! प्रभो ! आप जैसे तपस्वी की कृपा दृष्टि हो जाये तो मेरा दारिद्र्य दूर हो सकता है ?" ब्राह्मण की दीन दशा पर तपस्वी का मन पिघल गया । पर वह तो सर्वथा निष्कंचन था । देने के नाम पर उसके तन पर था एक कौपीन ! तपस्वी की शतमुखी करुणाधारा रुक नहीं सकी- "विप्र ! जरा सामने नदी के किनारे जो बालू का ढेर है, वहां देखो, हो सकता है तुम्हारा भाग्य नक्षत्र चमक उठे, वहां कल ही मैंने एक पारस मणि पड़ा देखा था ।" हर्ष विह्वल ब्राह्मण के पांव धरती पर नहीं टिके । वह दौड़ा आर बालू के ढेर में खोजने लगा । सचमुच १ छांदोग्य उपनिषद् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003185
Book TitleKhilti Kaliya Muskurate Ful
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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