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परमधन
भौतिक धन से अभातिक आनन्द की उपलब्धि नहीं हो सकती। धन नश्वर है, आनन्द अविनश्वर ! धन बाहर से प्राप्त होता है, आनन्द अन्तःकरण से स्फूर्त होता है । वह आनन्द है-संतोष ! समता ! भगवान महावीर ने कहा है
"धणेण किं धम्मधुराहिगारे ?'' धन से धर्म का धुरा नहीं चल सकती ? छांदोग्य उपनिषद् में याज्ञवल्क्य की पत्नी मैत्र यी कहती है"प्रिय ! आप जो धन मुझे देना चाहते हैं, उसे आप क्यों छोड़ रहे हैं ?" ___ याज्ञवल्क्य का उत्तर था “अमृतत्व की खोज ! मैं जिस अमर धन को पाना चाहता हूँ उसकी पहली शर्त है इस धन की लालसा का परित्याग ।"
प्रबुद्धचेता मैत्रेयी पुकार उठती है-"येनाहं नामृता
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उत्तरा० १४।१७
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