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सच्ची दृष्टि
महाभारत में कहा है-"जो रूप, धन, बल विद्या आदि अज्ञानी मनुष्यों के लिए मद (अहंकार) का कारण बनते हैं, वे ही ज्ञानी साधकों के लिए उलटे-अर्थात् दम (म-द-द-म) वैराग्य के कारण बन जाते हैं।''
यहीं बात भगवान महावीर ने यों कही है
"जे आसवा ते परिस्सवा'२ ___ जो बंध के कारण हैं, वे ही मुक्ति के कारण भी हो सकते हैं। जिस शरीर को साधारण मनुष्य सुन्दर एवं ललित मानकर उससे मोह करता है, साधक उसे ही -- "इमं सरीरं अणिच्चं असुई-असुई-संभवं 3- यह
१ विद्यामदो धनमदस्तृतीयोऽभिजनोमदः सदा एतेव लिप्तानामेतएव सतां दमाः ।
महा० उद्योग ३४४४४ २. आचारांग ॥४॥ ३. उत्तराध्ययन १६
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