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________________ चमत्कार बनाम सदाचार साधना, चमत्कारों की प्रसवभूमि है, किंतु चमत्कार साधना का आदर्श नहीं है, न उद्देश्य ही है। साधना का उद्देश्य है-शुद्धि, आत्म-शुद्धि से प्राप्त होती है सिद्धि ! सिद्धि मिलने पर प्रसिद्धि स्वतः दौड़कर आती है जैसे फूलों के पोछे भौंरे । शुद्धि और सिद्धि की उपेक्षा करके केवल प्रसिद्धि की कामना, साधना का दोष है। महान् आत्म-साधक भगवान महावीर ने कहा है-'नोपूयणं तवसा आवहेज्जा।"तप के द्वारा पूजा–प्रतिष्ठा की अभिलाषा नहीं करनी चाहिए। तथागत ने कहा था- जो केवल प्रसिद्धि के पीछे पड़कर लोगों को चमत्कार, मोहक आकर्षण व वशीकरण करता है, उसने वास्तव में धर्म को जाना ही नहीं है।" __एक बार किसी नगर में बहुमूल्य चन्दन का रत्नजटित प्याला ऊंचे खंभे पर टंगा था, जिसके नीचे लिखा हुआ था-"जो कोई साधक, सिद्ध योगी इस प्याले को बिना किसी हस्त स्पर्श के केवल चमत्कारमय यौगिक शक्ति से उतार लेगा उसकी सारी इच्छाए पूर्ण की जायेंगी।" Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003185
Book TitleKhilti Kaliya Muskurate Ful
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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