________________
अपना मार्ग खुद देखो नाप रहे थे, "चन्द्र से मंगल इतनी दूर है, शुक्र इतना और शनि इतना !"
आकाश की ओर मुह किए चलते-चलते खगोलशास्त्री जी सहसा धड़ाम से एक गड्ढे में गिर पड़े। पीछेपीछे आते एक पथिक ने आगे के यात्री को गिरा देखा तो लपक कर निकालने दाड़ा । शास्त्री जी के हाथ पकड़ते हुए उसने कहा- "इतना बड़ा गड्ढा भी दिखाई नहीं दिया, किधर देख रहे थे।" ___"भाई ! मुझे क्या पता आगे गड्ढा है, मैं तो आकाश के नक्षत्रों की दूरी नाप रहा था।" __ "ओह ! समझा, आप ज्योतिषी हैं। विद्वान लोग हमेशा दूसरों का ही रास्ता देखते हैं, यदि अपना रास्ता भी जरा देख लेते तो ये हाथ पांव टूटने की नौबत क्यू आती ?" यात्री ने व्यंगपूर्वक देखा और आगे चल दिया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org