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________________ ४० अनुश्रुत श्रतियाँ क्यों मार रहे हो ?" प्रहारक ने ब्रह्मचारी को सामने खड़ा देखकर • विनम्रता से कहा - " यह हमारी दासी है, बड़ी अधर्मिणी, दुराचारिणी है, यह दिन भर इधर उधर भटकती रहती है । आज सुबह से किसी दुष्ट पुरुष के साथ चली गई सो अब पकड़ में आई है, ब्रह्मचारी ! दुराचार की यही तो शिक्षा होनी चाहिए न ?” पापक का मन उद्विग्न हो उठा। उसने पूछा - "इसका नाम क्या है ? " 'शीलवती !' लोगों ने दासी की ओर घूरकर कहा । पापक आश्चर्य चकित सा देखता रहा "क्या शीलवती भी दुराचारिणी हो सकती है ?" पापक का मन उद्विग्न हो उठा, और वह पुनः नगर से आश्रम की ओर आने लगा । रास्ते में उसे एक पथिक मिला । पापक को देख वह निकट आया और बोला- “ब्रह्मचारी ! मैं रास्ते से भटक कर कब से यहाँ भूखा प्यासा बैठा हूँ, कृपया तुम अमुक नगर का मार्ग बताओ ।" पापक ने पूछा - "तुम्हारा नाम क्या है ? पथिक - "मेरा नाम है पंथक !" पापक चौंक उठा- 'क्या 'पंथक भी पथ भूल जाते हैं ?" अब तो पापक किसी दंश पीड़ित की तरह तिलमिलाता हुआ आचार्य के निकट पहुंचा और चरण पकड़कर बोला www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003185
Book TitleKhilti Kaliya Muskurate Ful
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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