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अनुश्रुत श्रतियाँ
क्यों मार रहे हो ?"
प्रहारक ने ब्रह्मचारी को सामने खड़ा देखकर • विनम्रता से कहा - " यह हमारी दासी है, बड़ी अधर्मिणी, दुराचारिणी है, यह दिन भर इधर उधर भटकती रहती है । आज सुबह से किसी दुष्ट पुरुष के साथ चली गई सो अब पकड़ में आई है, ब्रह्मचारी ! दुराचार की यही तो शिक्षा होनी चाहिए न ?”
पापक का मन उद्विग्न हो उठा। उसने पूछा - "इसका नाम क्या है ? "
'शीलवती !' लोगों ने दासी की ओर घूरकर कहा । पापक आश्चर्य चकित सा देखता रहा "क्या शीलवती भी दुराचारिणी हो सकती है ?" पापक का मन उद्विग्न हो उठा, और वह पुनः नगर से आश्रम की ओर आने लगा । रास्ते में उसे एक पथिक मिला । पापक को देख वह निकट आया और बोला- “ब्रह्मचारी ! मैं रास्ते से भटक कर कब से यहाँ भूखा प्यासा बैठा हूँ, कृपया तुम अमुक नगर का मार्ग बताओ ।"
पापक ने पूछा - "तुम्हारा नाम क्या है ? पथिक - "मेरा नाम है पंथक !"
पापक चौंक उठा- 'क्या 'पंथक भी पथ भूल जाते हैं ?" अब तो पापक किसी दंश पीड़ित की तरह तिलमिलाता हुआ आचार्य के निकट पहुंचा और चरण पकड़कर बोला
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