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नाम और काम
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तक्षशिला में बोधिसत्व के पांच सौ शिष्यों में एक 'पापक' नाम का शिष्य था । एक बार पापक अपने नाम के विषय में सोचता हुआ खिन्न हो उठा । आचार्य के. पास आकर निवेदन किया- "आर्य ! मेरा नाम अमांगलिक है, अतः मुझे कोई दूसरा सुन्दर नाम दीजिए ! सुन्दर नाम से ही सिद्धि मिल सकती है ।"
आचार्य ने 'पापक' के आग्रह का समाधान करने के लिए कहा - " जाओ ! नगर में जो सुन्दर शोभन नाम लगे वह खोज कर ले आओ, तुम्हें उसी नाम से पुकारूंगा।"
पापक घूमता हुआ एक बड़े नगर में पहुँचा । वहाँ असंख्य नर-नारियों के झुंड इधर उधर घूम रहे थे । पापक बड़े गौर से देख रहा था, तभी कुछ व्यक्ति एक शव को अर्थीपर चढ़ाए चले जा रहे थे । पापक ने पूछा" बन्धु ! इस मृत मानव का नाम क्या है ?"
शवयात्रियों ने कहा - "जीवक !"
पापक सुनकर विचार में पड़ गया - "क्या 'जीवक' भी मर सकता है ?" पापक इसी विचार में लीन आगे बढ़ा तो देखा कि एक नारी को कुछ लोग रस्सियों से पीट रहे हैं। उसकी पीठ नंगी है, और मारे दर्द के वह कराह रही है। पापक के मन में करुणा की हिलोरें उठीं, उसने संतप्त वाणी में पूछा - " बन्धुओ ! इस अबला को
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