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सुख का डोर : प्रीति संसार में सुख-संपत्ति, यश और कीर्ति, प्रीति की डोर से बंधी हुई है।
जिस मनुष्य में प्रेम-प्रीति नहीं, वह मनुष्य होकर भी मनुष्यता का आनन्द नहीं ले सकता । एक जैनाचार्य ने कहा है
'पोति सुण्णो-पिसुणो-जो प्रीति से शून्य है, वह अधम है।
जिस परिवार में प्रेम नहीं, वह परिवार नहीं, केवल एक झुड मात्र है। जिस राष्ट्र में प्रेम नहीं, वह राष्ट्र केवल एक विशाल भूखण्ड मात्र है।
प्रम-प्रीति से राष्ट्र, परिवार और व्यक्ति परस्पर बंधे रहते हैं। प्रेम-स्नेह-संगठन-एकता-ये सब फलित हैं
-पारस्परिक प्रीति के । जहाँ प्रीति, वहाँ नीति और विभूति भी स्थिर रहती है यह एक प्रचलित लोक कथा से स्पष्ट होता है
१ निशीथ भाष्य ६११२
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