________________
सुख को डोर : प्रीति .. एक धनाढ्य सेठ ने एक रात्रि में स्वप्न देखासाक्षात् लक्ष्मी उसके समक्ष उपस्थित होकर कह रही है- "सेठ ! अब तुम्हारा पुण्य समाप्त होने वाला है, अतः मैं चलो जाऊँगी, कुछ वर मांगना हो तो मांग लो।"
सेठ ने कहा- "देवि ! कल प्रातः कुटुम्ब के सब लोगों से सलाह करके जो माँगना होगा, माँग लूगा।"
चिंतातुर सेठ ने प्रातः कुटुम्ब के सब छोटों बड़ों को एकत्र किया और रात्रि के स्वप्न की चर्चा की। बड़े पुत्र ने हीरे मोती मांगने को कहा, मंझले पुत्र ने स्वर्ण राशि और छोटे पुत्र ने अन्न भंडार । सेठानी और पुत्र वधुओं ने भी इसी प्रकार कुछ-कुछ मांगने को कहा । अंत में सबसे छोटी बहू बोली-"पिताजी ! जब लक्ष्मी चली जायेगी तो ये सब चीजें कैसे रहेगी? इनका मांगना न मांगना समान है। आप तो मांगिये-कुटुम्ब परिवार में प्रम बना रहे।"
छोटी बहू की बात सबको पसंद आयी। दूसरी रात्रि में लक्ष्मी के दर्शन होने पर सेठ ने कहा-देवि ! आप रहना चाहें तो प्रसन्नता ! जाना चाहें तो भी कोई बात नहीं, किंतु एक वरदान मुझे दीजिए - "हमारे परिवार में हम सब एक दूसरे का आदर करें, परस्पर विश्वास एवं प्रेम से बंधे रहें।" ___ लक्ष्मी ने कहा- “सेठ ! अब तो तुम ने मुझे बांध लिया। जहाँ प्रेम और विश्वास होगा, वहाँ लक्ष्मी को
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org