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अनुश्रु त श्र तियाँ गया । अर्जुन चरणों की ओर खड़े, उनके जागने की प्रतीक्षा करने लगे।
श्री कृष्ण ने ज्यों ही आँखें खोलीं, चरणों में उपस्थित अर्जुन पर दृष्टि गिरी, 'धनंजय ! तुम कब, कैसे आये ?"
"वासुदेव ! मैं भी आया हुआ हूँ, अजुन से पहले" मन में शंकित, बाहर गवित दुर्योधन बोला। ___“ओह ! आप" !-श्री कृष्ण ने दुर्योधन की ओर शिर घुमाकर देखा-"कहिये क्या सेवा है ?"
"युद्ध में आपकी सहायता चाहिए।" "और अर्जुन तुम किस लिए आये ?" "वासुदेव ! मैं भी इसी उद्देश्य से आया हूं।"
श्री कृष्ण गंभीर होकर बोले- "आप दोनों ही हमारे सम्बन्धी हैं, इस गृहयुद्ध में किसी एक का पक्ष लेना उचित नहीं। अतः एक ओर मैं शस्त्रहीन रहूंगा, दूसरी ओर मेरी सशस्त्र सेना ! हां, अर्जुन को मैंने पहले देखा है, अतः प्रथम अवसर उसे मिलना चाहिए।"
अर्जुन की बांछे खिल गई, बड़ी आतुरता से उसने कहा-"वासुदेव ! आप हमारी ओर रहिए।"
अब दुर्योधन के मन चाहे हो गए, उसने कहा-'हां, हां ठीक है। नारायण अर्जुन के साथ रहेंगे और सज्जित नारायणी सेना हमारे साथ।" दुर्योधन वर प्राप्त कर प्रसन्नता पूर्वक लौट गया।
श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा- "तुम ने यह क्या
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