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ऐसे बोलो..
कमान से छूटा तीर और जबान से छूटा शब्द कभी लौट कर नहीं आते। इसलिए मुह से जो बात कही जाय वह सोच समझकर ही कहनी चाहिए। ___ आचार्य शय्यंभव ने दशवकालिक सूत्र में एक जगह कहा है
, “वाया दुरुत्ताणि दुरुद्धराणि,
वेराणु वंधीणि महन्भयाणि ।" वाणी से बोले हुए दुष्ट और कठोर वचन जन्म-जन्म तक वैर एवं भय की परंपरा खड़ी कर देते हैं।
इसलिए नीति का कथन है-पहले तोलो, फिर बोलो ! बोलने के पहले शब्द तुम्हारे हैं, बोलने के बाद वे पराये हो जाते हैं।
१. दशवकालिक ६।३१७
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