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________________ ऐसे बोलो १६५ एक बार हजरत मुहम्मद के पास एक व्यक्ति आया । वह गिड़गिड़ाता हुआ बोला-"मैंने अमुक आदमी को बहुत गालियां दी हैं, किन्तु अब मुझे अपने करतब पर बहुत रंज हो रहा है, कोई ऐसा उपाय बताइए कि मैं अपनी बुरी जबान को वापिस खींच लू।" मुहम्मद साहब ने एक अकतूलिए का तकिया उसे दिया और बोले - "इसमें से दो चार टुकड़े निकाल लो और इन्हें गांव भर में बिखेर दो। कल सुबह तुम फिर मेरे पास आना।' प्रातः वह व्यक्ति मुहम्मद के पास पहुंचा, तो मुहम्मद साहब बोले-"जो अकतूलिए तुमने गांव में बिखेरे थे उन्हें वापस बीनकर मेरे पास लाओ।" वह दिन भर गांव में घूमता रहा, पर एक भी अकतूलिया उसके हाथ नहीं लगा। सायंकाल निराश होकर लौटा-"हजरत ! वे तो हवा में उड़ गये, एक भी कहीं नहीं मिला।" मुहम्मद साहब ने कहा- 'निंदा वाणी तो उससे भी बारीक है। एक बार मुह से जो शब्द निकल गये वे फिर कभी लौटकर नहीं आते। इसलिए पहले ही जो कुछ बोलो, वह सोच समझकर बोलो और ऐसा बोलो कि फिर पछताना नहीं पड़े।" । यही बात कबीर जी ने कही हैऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय । औरन को शीतल करै आपहु शीतल होय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003185
Book TitleKhilti Kaliya Muskurate Ful
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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