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संत तुलसीदासजी की एक उक्ति है'तुलसी' या संसार में सबतें मिलिए धाय । का जाने काहि भेस में नारायण मिल जाय ।
कोई छोटा हो या बड़ा, परिचित हो या अपरिचित मनुष्य सर्वदा सबके साथ मधुरता और सद्व्यवहार से पेश आये यह लोकनीति का सूत्र है ।
महर्षि वाल्मीकि तो इससे भी आगे बढ़कर कहते हैं- कार्याणां कर्मणां पारं यो गच्छति स बुद्धिमान् ।'
मनुष्य अपने कर्तव्य कर्म को, केवल कर्तव्य बुद्धि से करता चला जाये, अगल-बगल न देखे, वही सबसे बड़ा बुद्धिमान है ।
सद्व्यवहार
व्यावहारिकता सिखाती है कि, हंसमुख चेहरा, मीठी वाणी और शिष्ट बर्ताव रखते समय यह मत देखिये कि सामने कौन है ? मेरा परिचित है या नहीं ? किन्तु
१. वाल्मीकि रामायण ८८।१४
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