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________________ १८३ अद्भुत तितिक्षा .. दक्षिण भारत के प्रसिद्ध संत तिरुवल्लुवर के जीवन का प्रसंग है । तिरुवल्लुवर जुलाहा थे, साड़ियां बनाकर अपनी आजीविका चलाते थे। एक बार कुछ युवक उधर से निकले । किसी ने कहा-“यह सधा हुआ संत है, इसे कभी क्रोध नहीं आता ।" एक उद्दण्ड धनी युवक भी उस टोली में था। उसने कहा--"चलो, परीक्षा करके देखें, इसे क्रोध आता है या नहीं ?" मनचले युवकों की टोली तिरुवल्लुवर के सामने आ खड़ी हुई । उद्दण्ड युवक ने साड़ी उठाई, और घूर कर पूछा- “कितने की है यह साड़ी ?" "दो रुपए की !" तिरुवल्लुवर बोले। युवक ने साड़ी के दो टुकड़े किए और एक टुकड़ा हाथ में लेकर पूछा- “यह कितने का है ?" संत ने उसी शांति के साथ उत्तर दिया-एक रुपये का।" __ युवक टुकड़े करता गया, और बार-बार उसका मूल्य पूछता गया। साड़ी का एक-एक तार उसने बिखेर दिया। इस छिछोरेपन को देखकर भी तिरुवल्लुवर शांति के साथ उत्तर देते गए। उनके चेहरे पर क्रोध व अशांति की एक तनिक-सी रेखा भी नहीं थी। शालीनता के समक्ष उद्दण्डता पराजित हो गई। युवक का नशा उतर गया, उसने जेब से दो रुपए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003185
Book TitleKhilti Kaliya Muskurate Ful
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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