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अद्भुत तितिक्षा
जिसका क्रोध शांत हो गया उसकी उद्विग्नता समाप्त हो गई, जिसकी उद्विग्नता मिट गई, संसार में उसके लिए सर्वत्र शांति का साम्राज्य है। संसार का कोई दुष्ट, क्रूर या दुर्जन उसे उत्पीडित नहीं कर सकता। क्रोध एवं क्लेश के प्रहार उस पर वैसे ही निरर्थक होते हैं, जैसे महासागर में फेंक गये पत्थर ।
प्रसिद्ध बौद्ध स्थविरों के वचन संग्रह 'थेर गाथा' में कहा गया है
उपसंतो उपरतो मन्तभाणी अनुद्धतो।
धुनाति पापके धम्मे दुमपत्त व मालुतो॥ जिसका हृदय उपशांत हो गया है, जो क्लेशों से दूर है, जो विचार पूर्वक कम बोलता है और कभी अहंकार नहीं करता, वह अपने पापधर्मों-क्लेशों को उसी प्रकार उड़ा देता है, जिस प्रकार हवा वृक्ष के सूखे पत्तों को।
१. थेरगाथा ११२
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