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जीवन स्फूर्तियां
गांधीजी और कस्तूरबा का जीवन सचमुच ऋग्वेद के इस सूक्त का सजीव चित्र था - "जाया विशते पति - पत्नी पति में मिल जाती है, पति के मन, वचन और कर्म के साथ एकाकार हो जाती है ।
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गांधीजी ने 'आत्मकथा' में लिखा है- "बा का जबरदस्त गुण महज अपनी इच्छा से मुझ में समा जाना था ।" कस्तूरबा ने अपना 'स्व' गांधीजी के व्यक्तित्व में इस आराधना के साथ लीन कर दिया था कि उसका 'अहं' गांधीजी के व्यक्तित्व का तेज बनकर निखर उठा था। वह गांधीजी के जीवन का अविभाज्य अंग बन गई थी, जिसके लिए गांधीजी को भी कहना पड़ा - " मैंने तो सत्याग्रह बा से सीखा है ।"
और कुछ पीछे चलिए, तो देखिये संस्कृत के प्रखर प्रतिभासम्पन्न महाकवि माघ का दाम्पत्य ! एक बार किसी दिन याचक की याचना से माघ द्रवित हो उठे । घर में इधर-उधर देखा, पर देने के लिए कुछ नहीं था । सहसा निद्रालीन पत्नी के हाथ के चमकते स्वर्ण कंगन पर दृष्टि गिरी, और महाकवि चुपके से पत्नी का एक कंगन निकालने लगे । कंगन अंगुलियों को छूने लगा तो पत्नी जाग गई । महाकवि मन-ही-मन कांप उठे - " पत्नी ने पति को रंगे हाथ चोरी करते पकड़ लिया । " पर पत्नी भी, वह आदर्श देवी थी, उसने दूसरे हाथ का कंगन भी निकालकर महाकवि को दे दिया, "एक
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