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आत्मभ्रांति
प्राचीन भारत के जीवनद्रष्टा संत मनोषी वशिष्ठ ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को जल-कमल-जीवन का मंत्र देते हुए कहा
"कर्ता बहिरकर्ताऽन्तर्लोके विहर राघव !"
राघव ! बाहर में सदा सक्रिय एवं कर्तृत्वशील रहकर भीतर में अकर्तृत्व का अनुभव करते रहो । यही जीवन की श्रेष्ठ कला है।
एकबार छत्रपति शिवाजी एक दुर्ग का निर्माण करवा रहे थे। समर्थ गुरु रामदास, जिनके चरणों में संपूर्ण मराठाराज्य समर्पित कर छत्रपति एक संरक्षक के रूप में सेवा कर रहे थे, सहसा उधर आ निकले।
गुरु चरणों में विनयावनत हो छत्रपति ने दुर्ग का निरीक्षण करने की प्रार्थना की। धनाधन निर्माण कार्य
१. वाल्मीकि रामायण १८१२३
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