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माता की आज्ञा
१६६ दश उपाध्यायों से एक आचार्य महान है, सौ आचार्यों से एक पिता और हजार पिताओं से एक माता का गौरव अधिक है। __श्री आशुतोष मुखर्जी के जीवन में मातृ-भक्ति का साकार रूप प्रतिबिम्बित हुआ था। श्री मुखर्जी जब कलकत्ता हाईकोर्ट के जज और कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइसचांसलर थे तो उनके मित्रों ने उन्हें विलायत जाने का आग्रह किया। वे स्वयं भी विदेश यात्रा के लिए उत्सुक थे। अपनी उत्सुकता और मित्रों का आग्रह लिए वे जब माता से विदेश यात्रा की अनुमति लेने पहुचे तो धार्मिक विचारों से प्रतिबद्ध माता ने विदेश यात्रा की अनुमति नहीं दी।
श्री मुखर्जी की यह बात जब भारत के गर्वनर जनरल लार्ड कर्जन को ज्ञात हुई तो वे पहले तो भारतीयों की अंधमातृभक्ति पर हंसे, फिर श्री आशुतोष मुखर्जी को बुलाकर कहा-"आपको विलायत जाना चाहिए।"
मुखर्जी ने कहा- "मेरी माता की इच्छा नहीं है।"
लार्ड कर्जन तनिक सत्ता से स्वर में बोले -“जाकर अपनी माता से कहिए, कि भारत के गर्वनर-जनरल आपको विलायत जाने की आज्ञा करते हैं।"
स्वाभिमानी मातभक्त मुखर्जी ने उत्तर दिया-"मैं
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