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माता की आज्ञा
माता-ईश्वर की प्रतिकृति है। मनुष्य जाति पर उसके असीम उपकार हैं। संतान माता के ऋण का बदला चुकाने के लिए उसकी सेवा करें, मातृ आज्ञा का ईश्वराज्ञ की भांति आदर करे. यह मातृभक्ति का सहज स्वरूप है। जैन आगमों में माता को-देव गुरु जणणी' कह कर अत्यंत सम्मान के साथ पुकारा है। उपनिषद् एक स्वर से आदेश-उपदेश दे रहे हैं- 'मातृ देवो भव !" माता की देव के तुल्य अर्चना करो।"
माता के गौरव का निदर्शन करते हुए मानव धर्मशास्त्र के प्रणेता मनु ने लिखा है
उपाध्यायान् दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता। सहस्र तु पितृन्माता गौरवेणातिरिच्यते ।
१. उपासक ३।१३७ २. उपनिषद् ३. मनुस्मृति २२१४५
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