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अनुश्रुत श्रतियाँ कोई झूठ बोलने का प्रसंग मेरे सामने आए । क्रोध करने का कारण उपस्थित हो । अब मैं कह सकता हूँ, कि 'सत्यं वद् क्रोधं मा कुरु' मुझे मन से याद हो गए हैं ।
"
युधिष्ठिर के ज्ञान- गम्भीर वचन सुनकर स्वयं गुरुजी भी उसकी सत्यनिष्ठ प्रज्ञा के समक्ष विनत हो गए । 'धर्मपुत्र ! सचमुच सच्चा पाठ तो तुमने ही पढ़ा है ।" ●
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