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________________ १२४ अनुश्रुत श्रुतियां “मेरा नाम है लज्जा ! मैं दृष्टि लोक में रहती हूँ।" "और यह तेजोदीप्त आंखों वाली कौन है ?" "मेरा नाम है-हिम्मत ! मैं हृदय लोक में निवास करती हूँ।" युवक ने तीनों देवियों को नमस्कार कर कदम आगे बढ़ाए ही थे कि तीन भयानक आकृतिधारी दैत्य उसके सामने आ धमके। साहस भरे स्वर में युवक ने पूछा--"कौन हो तुम ! कहां रहते हो ?' "मैं हूँ क्रोध ! मस्तिष्क में मेरा घर है।" "मठ !" युवक ने घृणा के साथ कहा । "वहां तो बुद्धि देवी रहती हैं।" ____ "ठीक कहते हो तुम ! लेकिन जब मैं आता हूँ तो बुद्धि वहां से कूच कर जाती है।" और तुम कौन हो?" "मैं हूँ लोभ ! आंखों में रहता हूँ।" "हैं ! आंखों में तो लज्जा रहती है ?" युवक ने कहा। "लेकिन तुम्हें नहीं मालूम, जब मैं आता हूँ तो उसका कहीं अता-पता भी नहीं चलता।" "और महाशय, आप कौन हैं ?'-युवक ने तीसरी दुबकी हुई आकृति की ओर देखा। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org ww
SR No.003185
Book TitleKhilti Kaliya Muskurate Ful
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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