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संकल्प
मनुष्य संकल्पमय है। संकल्पों का जैसा वायुमंडल उठता है, मनुष्य के जीवन की आकृति उसी रूप में ढल जाती है। इसीलिए एक मनीषी आचार्य ने कहा है
“संकप्पमओ जीओ, सुख-दुक्खमयं हवेई संकप्पो।"१ जीव संकल्पमय है, सुख-दुःख सब संकल्पों से ही पैदा होते हैं। __ जब उसके संकल्प विराट् होते हैं तो वह जीवन की परम दिव्यता का वरण करता है, असीम ऊंचाई का स्पर्श करने लगता है। और जब संकल्प निम्न, अशुभ होते हैं, तो हृदय मलिनताओं की अंधतमिस्रा में ठोकरें खाता है। दिव्य संकल्प दिव्यता की ओर ले जाते हैं और पशुता के विचार प्रशुत्व की ओर ! यजुर्वेद का वचन है
पशुभिः पशूनाप्नोति' १ स्वामीकार्तिकेयानुप्रेक्षा १८४ २ यजुर्वेद १६।२०
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