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संकल्प
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- मनुष्य पशुता के विचारों से पशुता को प्राप्त होता है। 'हंस बोध' नामक नीतिग्रन्थ में एक कहानी है । सुखों की असीम अभिलाषाओं में विभ्रांत बने मांधाता एक बार स्वर्ग के पारिजात ( नंदन ) वन में पहुंच गये । वे कल्पवृक्ष की शीतल - सुरभित छाया में बैठे कि कामनाए चंचल हो उठीं । मन स्वर्गीय सुखों की कल्पना में खो गया - "यदि यहाँ मेरा एक विलास भवन atar.......................”
तत्काल ही वहाँ सर्वसुख सामग्री से परिपूर्ण विलास भवन निर्मित हो गया । फूलों की मधुर गंध से वासित पुष्प तल्प बिछ गया ।
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"यदि यहां पीने को कादम्ब और विलासिनी अप्सराएं भी होंती ।" - मांधाता ने सोचा । निमिष मात्र में सब सामग्री उपलब्ध हो गई । सुखभोग के बाद सहसा एक भय मिश्रित हिलोर उठी - " कहीं इन्द्र को पता चल गया और मुझे स्वर्ग से निर्वासित कर दिया गया तो ......?” दूसरे ही क्षण क्षत-विक्षत मांधाता धरता पर लौटने लग गये । कथा का बोध देते हुए लिखा है - " यह जीव ही मांधाता है, और यह जगत ही कल्प वृक्ष है । जो जैसा संकल्प करता है, वैसी ही सिद्धि पाता है । "
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