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________________ संकल्प ११३ - मनुष्य पशुता के विचारों से पशुता को प्राप्त होता है। 'हंस बोध' नामक नीतिग्रन्थ में एक कहानी है । सुखों की असीम अभिलाषाओं में विभ्रांत बने मांधाता एक बार स्वर्ग के पारिजात ( नंदन ) वन में पहुंच गये । वे कल्पवृक्ष की शीतल - सुरभित छाया में बैठे कि कामनाए चंचल हो उठीं । मन स्वर्गीय सुखों की कल्पना में खो गया - "यदि यहाँ मेरा एक विलास भवन atar.......................” तत्काल ही वहाँ सर्वसुख सामग्री से परिपूर्ण विलास भवन निर्मित हो गया । फूलों की मधुर गंध से वासित पुष्प तल्प बिछ गया । T "यदि यहां पीने को कादम्ब और विलासिनी अप्सराएं भी होंती ।" - मांधाता ने सोचा । निमिष मात्र में सब सामग्री उपलब्ध हो गई । सुखभोग के बाद सहसा एक भय मिश्रित हिलोर उठी - " कहीं इन्द्र को पता चल गया और मुझे स्वर्ग से निर्वासित कर दिया गया तो ......?” दूसरे ही क्षण क्षत-विक्षत मांधाता धरता पर लौटने लग गये । कथा का बोध देते हुए लिखा है - " यह जीव ही मांधाता है, और यह जगत ही कल्प वृक्ष है । जो जैसा संकल्प करता है, वैसी ही सिद्धि पाता है । " I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003185
Book TitleKhilti Kaliya Muskurate Ful
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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