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अनुश्र त श्र तियाँ वह दुष्ट दुर्विचार दैत्य की छाया में छिपा रहा है। कैसी मूर्खता है मनुष्य की ! जिस परम रत्न से अपना ही नहीं, विश्व के लाखों करोड़ों प्राणियों का दुःख दारिद्रय और पीड़ा दूर कर सकता है,उसे केवल अपने क्षणिक भोग का साधन बना रहा है।
एक सेठ ने अंतिम प्रयाण के समय अपने पुत्रों को एक महामणि देते हुए कहा-"वत्स ! यह अमूल्य चन्द्रकांत मणि है, इस कामधेनु रूप महामणि से तुम जीवन के अनन्त श्री सुख-समृद्धि प्राप्त कर सकते हो।"
ज्येष्ठपूत्र ने मणि का उपयोग किया-रात्रि के गहन अंधकार में प्रकाश करने के लिए एक दीपक की भांति ।
कनिष्ठ पूत्र ने मणि को अर्पित कर दिया नगर-वधु के चरणों में, प्रणय-प्रार्थना के साथ ।
धन की भूखी गणिका ने मणि को किसी जौहरी के हाथ बेच डाला।
जौहरी ठहरा मणि का पारखी ! शारदीय पूर्णिमा की अमत वर्षिणी ज्योत्स्ना में मणि से रासायनिक प्रयोग किये उसने । प्रयोग सिद्ध हुआ, अक्षय स्वर्ण राशि उसके चरणों में लोटने लगी। रासायनिक सिद्धियों से उसने दीन-दुखियों व रोग-संतप्तजनों की सेवा की, परोपकार का पुण्य अर्जन किया।
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