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पारसमणि भारतीय संस्कृति के महान् स्वर गायक महर्षि व्यास ने कहा है-"नहि मानुषात् श्रेष्ठतरं हि किंचित् - मनुष्य जीवन से बढ़कर इस संसार में और कोई श्रेष्ठ वस्तु नहीं है।
उपनिषद की भाषा-मनुष्य को प्रजापति की प्रतिमा के रूप में प्रतिष्ठा दे रही है-“पुरुषो वै सहस्रस्य प्रतिमा''२ पुरुष भगवान का रूप है।। ___संत कवि तुलसी की वाणी उसी मनुष्यत्व में ईश्वर का अविनाशी रूप दर्शन कर हुलसित हो उठी है
ईश्वर अंश जीव अविनाशी, .. चेतन अमल सहज सुखराशी।
आश्चर्य है इस श्रेष्ठ वस्तु को मनुष्य निकृष्टतम विषय वासना की पूर्ति का साधन बना रहा है। इस प्रजापति की प्रतिमा पर वह वासनाओं के मलिन दुर्गन्ध. युक्त फूल चढ़ा रहा है, अतः इस पवित्र ईश्वरीय अंश को
१ म० भा० शांतिपर्व २६६२० २ शतपथ ब्रा० ७।५।२।१७
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