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अनुश्रुत श्रुतियाँ __अथर्ववेद के एक सूक्त में क्रोध को साक्षाद् अग्नि कहा है-“यदग्निरापो अदहत्'"-क्रोध रूप अग्नि जीवन की सुख शांति रूप रस को जला डालती है।।
मिश्र की एक प्राचीन लोक कथा है - "भगवान जब सृष्टि सृजन का कार्य पूरा कर चुके तो शांति के साथ कुछ सोच रहे थे। तभी शैतान ने घुटने टेक कर प्रार्थना की-'प्रभो! आपने मुझे भी अपने उन्हीं हाथों से बनाया है, जिनसे देवताओं और मनुष्यों को बनाया है। फिर उनके आनन्द और सुख भोग का प्रबंध आपने किया है तो मेरे भी भरण पोषण का कुछ प्रबन्ध कीजिए।"
क्षणभर तक भगवान सोचते रहे। कुछ क्षण बाद बोले- "मैं तुम्हें शरीर तो नहीं दे सकता, क्योंकि मुझे भय है कि कहीं तुम अपनी सृष्टि बढ़ाकर एक दिन मेरी सृष्टि को ही नष्ट न कर डालो । अतः मैं तुम्हें क्रोध के रूप में मर्त्य लोक में भेजता हूँ। जो मेरी सुन्दर सृष्टि का अपमान करे तुम उसके भीतर प्रवेश कर सकते हो।"
तब से शैतान क्रोध के रूप में मर्त्य लोक में आया, मनुष्य जब-जब भगवान की सत्य, शील, सेवा रूप सुन्दर सृष्टि का अपमान कर ऋद्ध होता है, शैतान उसके हृदय में प्रविष्ट हो जाता है।
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अथर्व० ११२५॥
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