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शैतान का वास
क्रोध-शैतान है। जैन आगमों में इसे चंडालदुष्ट कहा है।' मनुष्य के सत्कर्मों को क्रोध उसी प्रकार नष्ट कर देता है, जैसे अग्नि घास-फूस को। इसलिए कहा है
कुद्धो""सच्चं सीलं विणयं हणेज्ज ।२
क्रोधी व्यक्ति अपने सत्य, शील, विनय, विवेक आदि सत्कर्मों को भस्म कर डालता है। .
जैन नीतिशास्त्र के महान् मनीषि आचार्य सोमदेव ने कहा है-"अतिक्रोधनस्य प्रभुत्वमग्नौ पतितं. लवणमिव शतधा विशीर्यते ।"3 क्षण-क्षण में क्रोध करने वाले की मानसिक शक्तियां, जीवन सृष्टि वैसे ही चूर-चूर होकर नष्ट होती जाती है, जैसे अग्नि पर पड़ा हुआ नमक !
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प्रश्न २।२,
१. उत्त० ११११, ३. नीतिवाक्यामृत १३७,
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