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अनुश्रुत श्रुतियाँ
दुःख आ पड़ा था । उसे अपने ही साम्राज्य से निर्वासित कर दिया गया था, और पति को अपनी आँखों के सामने शूली पर चढ़ते देखना पड़ा । आप कुछ धीरुज से काम लीजिए ।" और दार्शनिक शोक मग्ना महिला को अनेक प्रख्यात स्त्रियों के दुःख पूर्ण वृत्तान्त सुनाने लगा । सात्त्वना की लम्बी चौड़ी बातें सुनकर भी महिला के आँसू नहीं थमे ।
दूसरे ही दिन महिला ने सुना - उस दार्शनिक के पुत्र का स्वर्गवास हो गया, और वह उसके शोक में विलख-बिलख कर रो रहा है । महिला ने संसार के उन सम्राटों की सूची तैयार की, जिन्हें पुत्र-शोक देखना पड़ा । और वह दार्शनिक के पास ले गई । पर सब कुछ पढ़ कर भी दार्शनिक का दुःख कम नहीं हुआ ।
तान मास बाद दोनों आनंदित मुद्रा में एक दूसरे से मिले । एक दूसरे ने दुःख दूर होने का उपाय पूछा तो दोनों के मुख से एक ही शब्द निकला - " समय " समय ही मनुष्य को शोक वहन करने की सामर्थ्य देता है ।"
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