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अनुश्रुत श्रुतियाँ
नदी ने अपना प्रवाह तेज करते हुए उत्तर दिया " बहना मेरा काम है, मुझे उसी में आनंद मिलता है, मैं अपने आनन्द के लिए बहती हूं, प्रतिदान या प्रतिफल की मुझे कोई चिंता नहीं ।"
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नदी बहती रही, युग-युग से उसके प्रवाह में वही निर्मलता, वही स्फूर्ति और वही पवित्रता बनी रही । सरोवर का जल पड़ा पड़ा प्रतिफल की चिंता में मलिन हो गया और एक दिन सरोवर सूख चला ।
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