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ऊपर देख
जीवन, समुद्र की यात्रा है। समुद्रयात्री अपनी नाव के नीचे सागर की छाती पर होते लहरों के गर्जन-तर्जन मय उत्थान पतन की ओर नहीं देखता, उसकी दृष्टि सदा आकाश की अनन्त ऊचाई को छूती रहती है ।
जीवन यात्रा में भय और संकट की गहराई में मत झांको, इससे हीनभावना जगती है, आत्म-विश्वास टूटता है, व्यक्ति अपनी स्थिति को असहाय-सा अनुभव कर झुंझला उठता है, भय-प्रताड़ित हो जाता है । संकटों के जिस गह्वर से निकलकर ऊपर आ चुके हो, पुनः उनकी ओर देखना बुद्धिमानी नहीं है । शास्त्र में कहा है
___"नो उच्चावयं मणं नियंछिज्जा ।''
संकट के समय मन को डांवाडोल मत होने दो, किंतु अपने लक्ष्य की अनन्त ऊचाई की ओर दृष्टि फैलाओ, अपने आदर्शों की रमणीय कल्पनाओं से मन
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आचारांग २।३।१
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