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६४ | चिन्तन के विविध आयाम : खण्ड १
(e) साधना, (१०) संख्या, (११) क्षेत्र, (१२) स्पर्शन, (१३) काल, (१४) अन्तर, (१५) भाव, (१६) अल्प - बहुत्व इन सोलह प्रकारों से चिन्तन किया है ।
जितने भी स्थूल परमाणु स्कन्ध हैं वे सभी प्रकार के रंगों और उपरंगों वाले होते हैं। मानव का शरीर स्थूल स्कन्ध वाला है । अतः उसमें सभी रंग हैं। रंग होने से वह बाह्य रंगों से प्रभावित होता है और उसका प्रभाव मानव के मानस पर भी पड़ता है । एतदर्थं ही भगवान महावीर ने सभी प्राणियों के प्रभाव व शक्ति की दृष्टि से शरीर और विचारों को छः भागों में विभक्त किया है और वही
श्या है ।
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डॉ० हर्मन जेकोबी ने लिखा है- जैनों के लेश्याओं के सिद्धान्त में तथा गोशालक के मानवों को छः विभागों में विभक्त करने वाले सिद्धान्त में समानता है। इस बात को सर्वप्रथम प्रोफेसर ल्यूमेन ने पकड़ा पर इस सम्बन्ध में मेरा विश्वास है जैनों ने यह सिद्धान्त आजीविकों से लिया और उसे परिवर्तित कर अपने सिद्धान्तों के साथ समन्वित कर दिया 11
प्रो० ल्यूमेन तथा डॉ० हर्मन जेकोबी ने मानवों का छः प्रकार का विभाजन गोशालक द्वारा माना है, पर अंगुत्तरनिकाय से स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत विभाजन गोशालक द्वारा नहीं अपितु पूरणकश्यप के द्वारा किया गया था। दीघनिकाय में छह तीर्थंकरों का उल्लेख है, उनमें पूरणकश्यप भी एक हैं जिन्होंने रंगों के आधार पर छः अभिजातियाँ निश्चित की थीं । वे इस प्रकार हैं
(१) कृष्णाभिजाति - क्रूर कर्म करने वाले सोकरिक, शाकुनिक प्रभृति जीवों का समूह ।
(२) नीलाभिजाति - बौद्ध श्रमण और कुछ अन्य कर्मवादी, क्रियावादी भिक्षुओं का समूह ।
(३) लोहिताभिजाति - एक शाटक निर्ग्रन्थों का समूह ।
(४) हरिद्राभिजाति - श्वेत वस्त्रधारी या निर्वस्त्र ।
(५) शुक्लाभिजाति - आजीवक श्रवण श्रमणियों का समूह ।
(६) परम शुक्लाभिजाति - आजीवक आचार्य, नन्द, वत्स, कृष, सांस्कृत्य, मस्करी गोशालक प्रभृति का समूह 11
आनन्द की जिज्ञासा पर तथागत बुद्ध ने कहा- ये छ: अभिजातियाँ अव्यक्त व्यक्ति द्वारा किया हुआ प्रतिपादन है । प्रस्तुत वर्गीकरण का मूल आधार अचेलता
1 Sacred Books of the East, Vol. XLV, Introduction, p. XXX. 2 अंगुत्तरनिकाय ६-६-३ भाग ३, पृ० ६३ ।
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दीघनिकाय १/२, पृ० १६, २० ।
अंगुत्तरनिकाय ६ | ६ | ३, भाग ३, पृ० ३५, ६३-६४ ।
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