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________________ लेश्या : एक विश्लेषण | ६३ भावलेश्या आत्मा का परिणाम विशेष है, जो संक्लेश और योग के अनुगत है। संक्लेश के जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट; तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम; मन्द, मन्दतर, मन्दतम आदि विविध भेद होने से भाव-लेश्या के अनेक प्रकार हैं, तथापि संक्षेप में उसे छ: भागों में विभक्त किया है । अर्थात्, मन के परिणाम शुद्ध और अशुद्ध दोनों ही प्रकार के होते हैं और उनके निमित्त भी शुभ और अशुभ दोनों ही प्रकार के होते हैं । निमित्त अपना प्रभाव दिखाता है जिससे मन के परिणाम उससे प्रभावित होते हैं । दोनों का पारस्परिक सम्बन्ध है । निमित्त को द्रव्यलेश्या और मन के परिणाम को भावलेश्या कहा है । जो पुद्गल निमित्त बनते हैं, उनमें वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श सभी होते हैं तथापि उनका नामकरण वर्ण के आधार पर किया गया है । सम्भव है गन्ध, रस और स्पर्श की अपेक्षा वर्ण मानव को अधिक प्रभावित करता हो । कृष्ण, नील और कपोत ये तीन रंग अशुभ हैं और इन रंगों से प्रभावित होने वाली लेश्याएँ भी अशुभ मानी गयी हैं और उन्हें अधर्म-लेश्याएं कहा गया है। तेजस्, पद्म और शुक्ल ये तीन वर्ण शुभ है और उनसे प्रभावित होने वाली लेश्याएँ भी शुभ हैं । इसलिए तीन लेश्याओं को धर्म-लेश्या कहा है । ____ अशुद्धि और शुद्धि की दृष्टि से छः लेश्याओं का वर्गीकरण इस प्रकार किया किया है(१) कृष्णलेश्या अशुद्धतम (२) नीललेश्या अशुद्धतर क्लिष्टतर (३) कापोतलेश्या अशुद्ध क्लिष्ट (४) तेजस्लेश्या अक्लिष्ट (५) पद्मलेश्या शुद्धतर अक्लिष्टतर (६) शुक्ललेश्या शुद्धतम अक्लिष्टतम प्रस्तुत अशुद्धि और शुद्धि का आधार केवल निमित्त ही नहीं अपितु निमित्त और उपादान दोनों हैं । अशुद्धि का उपादान कषाय की तीव्रता है और उसके निमित्त कृष्ण, नील, कापोत रंगवाले पुद्गल हैं और शुद्धि का उपादान कषाय की मन्दता है और उसके निमित्त रक्त, पीत और श्वेत रंग वाले पुद्गल हैं । उत्तराध्ययन में लेश्या का नाम, वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, परिणाम, लक्षण, स्थान, स्थिति, गति और आयु इन ग्यारह प्रकार से लेश्या पर चिन्तन किया है। आचार्य अकलंक ने तत्त्वार्थराजवार्तिक में लेश्या पर (१) निर्देश, (२) वर्ण, (३) परिणाम, (४) संक्रम, (५) कर्म, (६) लक्षण, (७) गति, (८) स्वामित्व, क्लिष्टतम 1 उत्तराध्ययन, ३४१५६ । 1- उत्तराध्ययन ३४१५७ । 3 उत्तराध्ययन ३४।३ । - तत्त्वार्थराजवार्तिक १६, पृ० २३८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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