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________________ ५६ | चिन्तन के विविध आयाम : खण्ड १ जीवन की आचार साधना को जैन आगम-साहित्य के प्रकाश में व्यक्त किया है। इसमें आसन, प्राणायाम आदि का भी वर्णन है । पदस्थ, पिण्डस्थ, रूपस्थ और रूपातीत ध्यानों का भी वर्णन किया है और मन की विक्षुप्त, यातायात, श्लिष्ट और सुलीन इन चार दशाओं का भी वर्णन किया है जो आचार्य की अपनी मौलिक देन है। आचार्य हेमचन्द्र के पश्चात् आचार्य शुभचन्द्र का नाम आता है । ज्ञानार्णव उनकी महत्त्वपूर्ण रचना है । सर्ग २६ से ४२ तक में प्राणायाम और ध्यान के स्वरूप और भेदों का वर्णन किया है। प्राणायाम आदि से प्राप्त होने वाली लब्धियों पर परकाय-प्रवेश आदि के फल पर चिन्तन करने के पश्चात् प्राणायाम को मोक्ष रूप साध्य सिद्धि के लिए अनावश्यक और अनर्थकारी बताया है। ___उसके पश्चात् उपाध्याय यशोविजयजी का नाम आता है, वे सत्योपासक थे। उन्होंने अध्यात्मसार, अध्यात्मोपनिषद्, योगावतार बत्तीसी, पातंजल योग सूत्र वृत्ति, योगविशिका टीका, योग दृष्टिनी सज्झाय आदि महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं । अध्यात्मसार ग्रन्थ के योगाधिकार और ध्यानाधिकार प्रकरण में गीता और पातंजल योगसूत्र का उपयोग करके भी जैन-परम्परा में विश्रुत ध्यान के विविध भेदों का समन्वयात्मक वर्णन किया है । अध्यात्मोपनिषद् में शास्त्रयोग, ज्ञानयोग, क्रियायोग और साम्ययोग के सम्बन्ध में चिन्तन करते हुए योगवासिष्ठ और तैत्तिरीय उपनिषद् के महत्त्वपूर्ण उद्धरण देकर जैनदर्शन के साथ तुलना की है। योगावतार बत्तीसी में पातंजल योग सूत्र में जो योग-साधना का वर्णन है, उसका जैन दृष्टि से विवेचन किया है और हरिभद्र के योग-विशिका और षोडशक पर महत्त्वपूर्ण टीकाएँ लिखकर उसके रहस्यों को उद्घाटित किया है, जैनदर्शन की दृष्टि से पातंजल योगसूत्र पर भी एक लघुवृत्ति लिखी है । इस तरह यशोविजयजी के ग्रन्थों में मध्यस्थ भावना, गुण-ग्राहकता व समन्वयक दृष्टि स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। ___ सारांश यह है कि जैन परम्परा का योग साहित्य अत्यधिक विस्तृत है। मूर्धन्य मनीषियों ने उस पर जम कर लिखा है । आज पुनः योग पर आधुनिक दृष्टि से चिन्तन ही नहीं, किन्तु जीवन में अपनाने की आवश्यकता है । यहाँ बहुत ही संक्षेप में मैंने अपने विचार व्यक्त किये हैं । अवकाश के क्षणों में इस पर विस्तार से लिखने का विचार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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