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जैनयोग : एक अनुशीलन | ५३
ने योग पर जितना व्यवस्थित रूप से लिखा उतना व्यवस्थित रूप से अन्य वैदिक विद्वान नहीं लिख सके । वह बहुत ही स्पष्ट तथा सरल है, निष्पक्षभाव से लिखा हुआ है । प्रारम्भ से प्रान्त तक की साधना का एक साथ संकलन - आकलन है । पातंजल योग-सूत्र की तीन मुख्य विशेषताएँ हैं
प्रथम, वह ग्रन्थ बहुत ही संक्षेप में लिखा गया है । दूसरी विशेषता, विषय की पूर्ण स्पष्टता है और तीसरी विशेषता, अनुभव की प्रधानता है । प्रस्तुत ग्रन्थ चार पाद में विभक्त है । प्रथम पाद का नाम समाधि है, द्वितीय का नाम साधन है, तृतीय का नाम विभूति है और चतुर्थ का नाम कैवल्य पाद है । प्रथम पाद में मुख्य रूप से योग का स्वरूप, उसके साधन तथा चित्त को स्थिर बनाने के उपायों का वर्णन है । द्वितीय पाद में क्रिया योग, योग के अंग, उनका फल, और हेय, हेतु, हान और हानोपाय इन चतुर्व्यूह का वर्णन है । तृतीय पाद में योग की विभूतियों का विश्लेषण है । चतुर्थ पाद में परिणामवाद की स्थापना, विज्ञानवाद का निराकरण और कैवल्य अवस्था के स्वरूप का चित्रण है ।
भागवत पुराण में भी योग पर विस्तार से लिखा गया है । 1 तान्त्रिक सम्प्रदाय वालों ने भी योग को तन्त्र में स्थान दिया है । अनेक तन्त्र ग्रन्थों में योग का विश्लेषण उपलब्ध होता है । महानिर्वाणतन्त्र' और षट्चक्र निरूपण' में योग पर विस्तार से प्रकाश डाला है । मध्यकाल में तो योग पर जन-मानस का अत्यधिक आकर्षण बढ़ा जिसके फलस्वरूप योग की एक पृथक सम्प्रदाय बनी जो हठयोग के नाम से विश्रुत है । जिसमें आसन, मुद्रा, प्राणायाम प्रभृति योग के बाह्य अंगों पर विशेष बल दिया गया । हठयोग प्रदीपिका शिव संहिता, घेरण्ड संहिता, गोरक्षा-पद्धति, गोरक्ष-शतक, योग तारावली, बिन्दुयोग, योग बीज, योग- कल्पद्र ुम आदि मुख्य ग्रन्थ हैं । इन ग्रन्थों में आसन, बन्ध, मुद्रा, षट्कर्म, कुम्भक, पूरक, रेचक आदि बाह्य अंगों का विस्तार से विश्लेषण किया गया है । घेरण्ड संहिता में तो आसनों की संख्या अत्यधिक बढ़ गयी है ।
गीर्वाण गिरा में ही नहीं अपितु प्रान्तीय भाषाओं में भी योग पर अनेक ग्रन्थ लिखे गये हैं | मराठी भाषा में गीता पर ज्ञानदेव रचित ज्ञानेश्वरी टीका में योग का सुन्दर वर्णन है । कबीर का बीजक ग्रन्थ योग का श्रेष्ठ ग्रन्थ है ।
बौद्ध परम्परा में योग के लिए समाधि और ध्यान शब्द का प्रयोग मिलता है । बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग को अत्यधिक महत्त्व दिया है । बोधित्व प्राप्त करने के पूर्व
1 भागवत पुराण, स्कन्ध ३, अध्याय २८; स्कन्ध ११, अध्याय १५ - १६-२० ।
महानिर्वाण तन्त्र, अध्याय ३ और Tantrik Texts में प्रकाशित ।
1
8 षट्चक्र निरूपण, पृष्ठ ६०, ६१, ८२, ६०, ६१ और १३४ ।
4 ज्ञानेश्वरी टीका - छठा अध्याय ।
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