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________________ ४८ | चिन्तन के विविध आयाम [खण्ड २] (२) बारह महीने में छह महीने तक चार विगय ग्रहण नहीं करना । केवल एक विगय का ही उपयोग करना। (३) छः महीने तक अचित्त हरी सब्जी आदि का भी उपयोग नहीं करना। (४) चाय का परित्याग। (५) उन्होंने महासती कुसुमवतीजी, महासती पुष्पवतीजी और महासती प्रभावतीजी1 ये तीन शिष्याएँ बनायीं। उसके पश्चात् उन्होंने अपनी नेश्राय में शिष्याएँ बनाना त्याग दिया । यद्यपि उन्होंने पहले भी तीस-पैंतीस साध्वियों को दीक्षा प्रदान की किन्तु उन्हें अपनी शिष्याएं नहीं बनायीं। (६) प्लास्टिक, सेलूलाइड आदि के पात्र, पट्टी आदि कोई वस्तु अपनी नेश्राय में न रखने का निर्णय लिया। (७) जो उनके पास पात्र थे उनके अतिरिक्त नये पात्र ग्रहण करने का भी उन्होंने त्याग कर दिया। (८) एक दिन में पाँच द्रव्य से अधिक द्रव्य ग्रहण न करना। (8) प्रतिदिन कम से कम पच्चीसों गाथाओं की स्वाध्याय करना। (१०) बारह महीने में एक बार पूर्ण बत्तीस आगमों को स्वाध्याय करना। इस प्रकार उन्होने अपने जीवन को अनेक नियम और उपनियमों से आबद्ध बनाया। उनके जीवन में वैराग्य भावना अटखेलियाँ करती थीं। यही कारण है कि अजमेर में सन् १९६३ में श्रमणी संघ ने मिलकर आपको चन्दनबाला श्रमणी संघ की अध्यक्षा नियुक्त किया और श्रमणसंघ के उपाचार्य श्री गणेशीलालजी महाराज समयसमय पर अन्य साध्वियों को प्रेरणा देते हुए कहते कि देखो, विदुषी महासती सोहनकुवरजी कितनी पवित्र आत्मा है । उनका जीवन त्याग-वैराग्य का साक्षात् प्रतीक है । तुम्हें इनका अनुसरण करना चाहिए । विदुषी महासती सोहनकुवरजी जहाँ ज्ञान और ध्यान में तल्लीन थीं वहां उन्होंने उत्कृष्ट तप की भी अनेक बार साधनाएँ कीं। उनके तप की सूची इस प्रकार हैं ३३ २ ३२ १ ३१ १ २४ २ २३ १ २२ २ २१ १ २० २ १७ ३ । । ३ १३ १० १० ५० ४० ४० ६५ ६१ ८० | 1 इन तीनों के परिचय के लिए देखिए- 'वर्तमान युग की साध्वियां । -ले० राजेन्द्रमुनि साहित्यरत्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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