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________________ ३८ | चिन्तन के विविध आयाम [खण्ड २] थी । स्तोक साहित्य का आपने अच्छा अभ्यास किया । आपकी एक शिष्या बनी जिनका नाम खमानकुंवरजी है। आपका स्वर्गवास २०२६ माह बदी अष्टमी को १२ घंटे के संथारे से सायरा में हुआ। महासती प्रेम कुंवरजी- आपका जन्म उदयपुर राज्य के गोगुन्दा ग्राम में हुआ और आपका पणिग्रहण उदयपुर में हुआ था। पति का देहान्त होने पर महासती फूलकुंवरजी के उपदेश से प्रभावित होकर दीक्षा ग्रहण की। आप प्रकृति से सरल, विनीत और क्षमाशील थीं। वि० सं० १९६४ में आपका उदयपुर में स्वर्गवास हुआ । आपकी एक शिष्या थी जिनका नाम विदुषी महासती पानकुंवरजी था, जो बहुत ही सेवाभाविनी थीं और जिनका स्वर्गवास वि० सं० २०२४ के पौष माह में गोगुन्दा ग्राम में हुआ। महासती मोहनकुंवर जी—आपका जन्म उदयपुर राज्य के वाटी ग्राम में हुआ था । आप लोदा परिवार की थीं । आपका पाणिग्रहण मोलेरा ग्राम में हुआ था ! महासती फूलक वरजी के उपदेश को श्रवण कर चारित्रधर्म ग्रहण किया । आपको थोकड़ों का अच्छा अभ्यास था और साथ ही मधुर व्याख्यानी भी थीं। महासती शौभाग्यवरजी- आपका जन्म बड़ी सादड़ी नागोरी परिवार में हुआ था और बड़ी सादड़ी के निवासी प्रतापमल जी मेहता के साथ आपका पाणिग्रहण हुआ। आपके एक पुत्र भी हुआ । महासती श्री धूल कुवरजी के उपदेश को सुनकर आपने प्रव्रज्या ग्रहण की। आपकी प्रकृति भद्र थी। ज्ञानाभ्यास साधारण था । वि. सं० २०२७ आसोज सुदी तेरस को तीन घंटे संथारे के साथ गोगुन्दा में आपका स्वर्गवास हुआ। महासती शम्भकुंवरजी-आपका जन्म वि० सं० १९५८ में वागपुरा ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम गेगराजजी धर्मावत और माता का नाम नाथीबाई था। खाखड़ निवासी अनोपचन्द जी वनोरिया के सुपुत्र धनराजजी के साथ आपका पाणिग्रहण हुआ। आपके दो पुत्रियाँ हुई। बड़ी पुत्री भूरबाई को पाणिग्रहण उदयपुर निवासी चन्दनमल जी कर्णपुरिया के साथ हुआ। कुछ समय पश्चात् पति का निधन होने पर आप उदयपुर में अपनी पुत्री के साथ रहने लगी। महासती धूलवरजी के उपदेश को सनकर वैराग्य भावना उद्बद्ध हुई। अपनी लघु पुत्री अचरज बाई के साथ वि० सं० १९८२ फाल्गुन शुक्ला द्वितीया को खाखड ग्राम में दीक्षा ग्रहण की। पुत्री का नाम शीलकुवरजी रखा गया । आपको थोकड़ों का तथा आगम साहित्य का अच्छा परिज्ञान था। आपके प्रवचन वैराग्यवर्धक होते थे । वि० सं० २०१८ में आप गोगुन्दा में स्थिरवास विराजी। वि० सं० २०२३ के आषाढ़ बदी तेरस को संथारापूर्वक 1 देखिए परिचय- वर्तमान परम्परा में साध्वियां-ले० राजेन्द्र मुनि साहित्यरत्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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