________________
जैन शासन प्रभाविका अमर साधिकाएँ | ३६
स्वर्गवास हुआ । आपकी प्रकृति भद्र व सरल थी । सेवा का गुण आप में विशेष रूप से था ।
इसी परम्परा में परमविदुषी महासती श्री शीलकुवरजी महाराज वर्तमान में हैं । महासती शीलकुवरजी की महासती मोहनकुवरजी, महासती सायरकुँवरजी, विदुषी महासती श्री चन्दनबालाजी, महासती श्री चेलनाजी, महासती साधना कुंवरजी और महासती विनयप्रभाजी आदि अनेक आपकी सुशिष्याएँ हैं जिनमें बहुत सी प्रभावशाली विचारक व वक्ता हैं ।
महासती नवलाजी की चतुर्थ शिष्या जसाजी हुईं। उनके जन्म आदि 'वृत्त के सम्बन्ध में सामग्री प्राप्त नहीं हो सकी है। उनकी शिष्या - परम्पराओं में महासती श्री लाभकुंवरजी थीं । इनका जन्म उदयपुर राज्य में कंबोल ग्राम में हुआ । इन्होंने लघुवय में दीक्षा ग्रहण की। ये बहुत ही निर्भीक वीरांगना थीं। एक बार अपनी शिष्याओं के साथ खमनोर (मेवाड़) ग्राम से सेमल गाँव जा रही थीं। उस समय साथ में अन्य कोई भी गृहस्थ श्रावक नहीं थे, केवल साध्वियां ही थीं। उस समय सशस्त्र चार sra आपको लूटने के लिए आ पहुंचे । अन्य साध्वियाँ डाकुओं के डरावने रूप को देखकर भयभीत हो गयीं । डाकू सामने आये । महासती जी ने आगे बढ़कर उन्हें कहा -- तुम वीर हो, क्या अपनी बहू-बेटी साध्वियों पर हाथ उठाना तुम्हारी वीरता के अनुकूल है ? तुम्हें शरम आनी चाहिए। इस वीर भूमि में तुम साध्वियों के वस्त्र आदि लेने पर उतारू हो रहे हो । क्या तुम्हारा क्षात्रतेज तुम्हें यही सिखाता है ? इस प्रकार महासतीजी के निर्भीकतापूर्वक वचनों को सुनकर डाकुओं के दिल परिवर्तित हो गये । वे महासतीजी के चरणों में गिर पड़े और उन्होंने प्रतिज्ञा की कि हम भविष्य में किसी बहन या माँ पर हाथ नहीं उठायेंगे और न बालकों पर ही । डाका डालना तो हम नहीं छोड़ सकते, पर इस नियम का हम दृढ़ता से पालन करेंगे ।
एक बार महासती लाभकुंवरजी चार शिष्याओं के साथ देवरिया ग्राम में पधारीं । वहाँ पर एक बहुत ही सुन्दर मकान था । एक श्रावक ने कहा - महासतीजी यह मकान आप सतियों के ठहरने के लिए बहुत ही साताकारी रहेगा । अन्य श्रावकगण मौन रहे । महासतीजी वहाँ पर ठहर गयीं । महासतीजी ने देखा उस मकान में पलंग बिछा हुआ था । उस पर गादी तकिये बिछाये हुए थे तथा इत्र और पुष्पों की मधुर सौरभ से मकान सुवासित था । रात्रि में कोई भी बहिन महासतीजी के दर्शन के लिए वहाँ उपस्थित नहीं हुईं। महासतीजी को पता लग गया कि इस मकान में अवश्य ही भूत और प्रेत का कोई उपद्रव है । महासती लाभकुंवरजी ने सभी शिष्याओं को आदेश दिया कि सभी आकर मेरे पास पास बैठें। आज रात्रि भर हम अखण्ड नवकार मंत्र का जाप करेंगी। जाप चलने लगा । एक साध्वीजी को जरा नींद आने लगीं । ज्यों ही वे सोईं त्यों ही प्रेतात्मा उस महासती की छाती पर सवार हो गयी जिससे वह चिल्लाने लगी । महासती लाभकु वरजी ने आगे बढ़कर उस प्रेत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org