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________________ जैन शासन-प्रभाविका अमर साधिकाएँ | ३७ थी । ७५ वर्ष की उम्र में वि० सं० १९८५ के आसोज महीने में आपका उदयपुर में स्वर्गवास हुआ। महासती धूल कुंवरजी-आपका जन्म उदयपुर राज्य के मादड़ा ग्राम में वि० सं० १९३५ माघ बदी अमावस्या को हुआ। आपके पिताश्री पन्नालाल जी चौधरी और माता का नाम नाथीबाई था। माता-पिता ने दीर्घकाल के पश्चात् सन्तान होने से आपका नाम धूलकुवर रखा । तेरह वर्ष की लघुवय में वास निवासी चिमनलाल जी ओरडिया के साथ आपका पाणिग्रहण हुआ। कुछ समय के पश्चात् ही पति का देहान्त होने पर, आपकी भावना महासती फूलकुवर जी के उपदेश को सुनकर संयम ग्रहण करने की हुई । किन्तु पारिवारिक जनों के अत्याग्रह के कारण आप संयम न ले सकी और वि० सं० १९५६ में फाल्गुन बदी तेरस को वास ग्राम में महासती फूलक वरजी के पास दीक्षा ग्रहण की। विनय, वैयावत्य और सरलता आपके जीवन की मुख्य विशेषताएँ थीं। आपने अनेक शास्त्रों को भी कण्ठस्थ किया था । लगभग ३०० थोकड़े आपको कण्ठस्थ थे । आपके महासती आनन्दकुवरजी, महासती सौभाग्यकुवरजी, महासती शम्भक वरजी, बालब्रह्मचारिणी शीलकंवरजी, महासती मोहनकुंवरजी, महासती कंचनकुवरजी, महासती सुमनवतीजी, महासती दयावरजी, आदि शिष्याएं थीं । श्रद्धेय सगुद्रुवर्य पुष्करमुनिजी महाराज को भी प्रथम आपके उपदेश से ही वैराग्य भावना जागृत हुई थी। आपका विहार क्षेत्र मेवाड़, मारवाड़, मध्यप्रदेश, अजमेर, ब्यावर था । वि० सं० २००३ में आप गोगुन्दा ग्राम में स्थानापन्न विराजी और वि० २०१३ में कार्तिक शुक्ला ग्यारस को २४ घंटे के संथारे के पश्चात् आपका स्वर्गवास हुआ। महासती लाभकुंवरजी-आपका जन्म वि० सं० १६३३ में उदयपुर राज्य के ढोल ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम मोतीलालजी ढालावत और माता का नाम तीजबाई था । आपका पाणिग्रहण सायरा के कावेडिया परिवार में हुआ था। लघुवय में ही पति का देहान्त हो जाने पर महासती फूलकवरजी के उपदेश से प्रभावित होकर वि० सं० १९५६ में सादडी मारवाड़ में दीक्षा ग्रहण की। आपका कण्ठ बहुत मधुर था। व्याख्यान-कला सुन्दर थी। आपकी दो शिष्याएं हुई-महासती लहरकुंवरजी और दाखकुंवरजी । आपका स्वर्गवास २००३ में श्रावण में यशवंतगढ़ में हुआ। महासतो लहरकुंवरजी-आपका जन्म नान्देशमा ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम सूरजमलजी सिंघवी और माता का नाम फूलकुवर बाई था । आपका पाणिग्रहण ढोल निवासी गेगराजजी ढालावत के साथ हुआ। पति का देहान्त होने पर कुछ समय के पश्चात् एक पुत्री का भी देहावसान हो गया। एक पुत्री जिसकी उम्र सात वर्ष की थी उसे उसकी दादी को सौंपकर वि० सं० १९८१ में ज्येष्ठ सुदी बारस को नान्देशमा ग्राम में दीक्षा ग्रहण की । आपकी प्रकृति मधुर व मिलनसार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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