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कर्मयोगी श्रीकृष्ण के आगामी भव-एक अनुचिंतन | १५
समान ही आगामी चौबीसी के चौबीसवें तीर्थंकर अनन्तविजय का वर्णन होगा। जब इस नियम के प्रकाश में हम भगवान् अरिष्टनेमि से लेकर आगामी चौबीसी के बारहवें अमम नामक तीर्थकर का अन्तर काल मिलाते हैं तो सत्रह सागरोपम के लगभग अन्तर काल होता है । तीन भव मानने पर सात सागर से कुछ अधिक समय होता है क्योंकि तृतीय पृथ्वी में श्रीकृष्ण सात सागर रहते हैं। तीन भव मानने से काल गणना फिट नहीं बैठती है।
____ अन्तकृत्दशांग की तरह वसुदेवहिण्डी, कम्मपयडी-टीका, अममस्वामी-चरित्र, लोकप्रकाश दीपावलीकल्प आदि में श्रीकृष्ण के बारहवें अमम तीर्थंकर होने का उल्लेख है किन्तु उन ग्रन्थकारों ने अन्तकृत्दशांग की तरह तीन न मानकर पाँच भव माने हैं । उनके अभिमतानुसार श्रीकृष्ण का जीव तृतीय पृथ्वी से निकलकर शतद्वार नगर में जितशत्रु राजा का पुत्र बनेगा। मांडलिक राजा होकर चारित्र को स्वीकार करेगा । वहाँ पर वह तीर्थकर नामकर्म का अनुबन्ध करेगा, वहाँ से आयु पूर्णकर पाँचवें ब्रह्मदेवलोक में उत्पन्न होगा, जहाँ पर दस सागर की स्थिति भोगकर वहाँ से वह च्युत होकर अमम नाम का तीर्थंकर होगा।
___ पाँच भव मानने से काल गणना भी ठीक बैठती है, क्योंकि तृतीय पृथ्वी की सात सागर और पाँचवें ब्रह्मदेवलोक की दस सागर इस प्रकार सत्रह सागरोपम का कालप्रमाण होता है। आगामी चौबीसी के नौवें तीर्थंकर पोटिल का तीर्यकाल पौन पल्योपम न्यून तीन सागर है । दसवें (शतक) तीर्थंकर का तीर्थकाल चार सागर है।
1 स्थानांग-समवायांग, टिप्पणी, पृ० ७३४ । 2 कृष्ण जीवोऽममाख्यः स द्वादशो भविता जिनः सुरासुरनराधीश प्रणतक्रमपंकजः ।
----काललोकप्रकाश, ३४।६१, पृ० ६३५ । (क) कन्हा तइयाए पुढवीए उवट्टित्ता इहेव भारहे वासे सयदुवारे नयरे जियसत्तुस्स रन्नोपुत्तताए उववज्जिऊण पत्तमण्डलि अभावो पव्वज्जं पडिवज्जिअ तित्थयरनामकम्मं समुज्जणित्ता बंभलोए कप्पे दससागरोवमाऊ होऊण तओ चुओ बारसमो अममो नाम अरहा भविस्ससि ।
-वसुदेव हिण्डी। (ख) निरयाओ नरभवंमि देवो, होऊण पंचमे कप्पे। -रत्नसंचय (ग) क्षीण सप्तकस्य कृष्णस्य पंचमे भवेऽपि मोक्षगमनं श्रूयते उक्त च
नरयाओ नरभवंमि, देवो होउण पंचमे कप्पे । तत्तो चुओ समाणो, बारसमो अममतित्थयरो॥
-कम्मपयडी-टीका । गच्छंत्यवश्यं ते ऽधस्ता-त्वं गामी बालुकाप्रभाम् । श्रुत्वेति कृष्णः सद्योपि नितांत विधुरोऽभवत् ।। [क्रमशः]
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