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भगवान अरिष्टनेमि की ऐतिहासिकता
ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भगवान् अरिष्टनेमि को तार्क्ष्य अरिष्टनेमि भी लिखा है :
स्वस्ति न इन्दो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्तिनस्तायोऽरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिदधातु ॥
विज्ञों की धारणा है कि अरिष्टनेमि शब्द का प्रयोग जो वेदों में हुआ है वह भगवान् अरिष्टनेमि के लिए है।" ___ महाभारत में भी 'ताय' शब्द का प्रयोग हुआ है । जो भगवान् अरिष्टनेमि का ही अपर नाम होना चाहिए। उन्होंने राजा सगर को जो मोक्षमार्ग का उपदेश दिया है वह जैन धर्म के मोक्षमन्तव्यों से अत्यधिक मिलता-जुलता है। उसे पढ़ते समय सहज ही ज्ञात होता है कि हम मोक्ष सम्बन्धी जैनागमिक वर्णन पढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा
सगर ! मोक्ष का सुख ही वस्तुतः समीचीन सुख है । जो अहर्निश धन-धान्य आदि के उपार्जन में व्यस्त है, पुत्र और पशुओं में ही अनुरक्त है वह मूर्ख है, उसे यथार्थ ज्ञान नहीं होता । जिसकी बुद्धि विषयों में आसक्त है, जिसका मन अशान्त है, ऐसे मानव का उपचार कठिन है, क्योंकि जो राग के बंधन में बंधा हुआ है वह मूढ़ है तथा
+ अन्तकृद्दशा वर्ग ५, अ० १ ६. (क) त्वमू षु वाजिनं देवजूतं सहावानं तरुतारं रथानाम् । अरिष्टनेमि पृतनाजमाशु स्वस्तये ता_मिहा हुवेम ।।
-ऋग्वेद १०।१२।१७८।१ (ख) ऋग्वेद १।१।१६ ७. यजुर्वेद २५।१६ ८. सामवेद ३६ ६. ऋग्वेद १११११६ १०. उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन पृ० ७ ११. एवमुक्तस्तदा तायः सर्वशास्त्रविदांवरः । विबुध्य संपदं चार यां सद्वाक्यमिदमब्रवीत् ।।
-महाभारत शान्तिपर्व २८८।४
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