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मोक्ष पाने के लिए अयोग्य है । ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्पष्ट है कि सगर के समय में वैदिक लोग मोक्ष में विश्वास नहीं करते थे अतः यह उपदेश किसी वैदिक ऋषि का नहीं हो सकता । उसका सम्बन्ध श्रमण संस्कृति से है ।
यजुर्वेद में अरिष्टनेमि का उल्लेख एक स्थान पर इस प्रकार आया है - अध्यात्मयज्ञ को प्रगट करने वाले, संसार के भव्य जीवों को सब प्रकार से यथार्थ उपदेश देने वाले और जिनके उपदेश से जीवों की आत्मा बलवान् होती है उन सर्वज्ञ नेमिनाथ के लिए आहुति समर्पित करता हूँ ।
भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण.
डाक्टर राधाकृष्णन ने लिखा है यजुर्वेद में ऋषभदेव अजितनाथ और अरिष्टनेमि इन तीन तीर्थंकरों का उल्लेख पाया जाता है । १४
स्कंदपुराण के प्रभास खण्ड में वर्णन है - अपने जन्म के पिछले भाग में वामन ने तप किया । उस तप के प्रभाव से शिव ने वामन को दर्शन दिये । वे शिव श्यामवर्ण, अचेल तथा पद्मासन से स्थित थे । वामन ने उनका नाम नेमिनाथ रखा । यह नेमिनाथ इस घोर कलिकाल में सब पापों का नाश करने वाले हैं। उनके दर्शन और स्पर्श से करोड़ों यज्ञों का फल प्राप्त होता है । "
१२. महाभारत, शान्तिपर्व २८८ ५, ६ १३. वाजस्य
नु प्रसव आवभूवेमात्र विश्वा भुवनावि सर्वतः । स नेमिराजा परियाति विद्वान् प्रजा पुष्टि वर्द्धमानोऽस्मै स्वाहा || - वाजसनेयि- माध्यंदिन शुक्लयजुर्वेद, अध्याय 8 मंत्र २५ सातवलेकर संस्करण (विक्रम १६८४
१४. Indian philosphy vol. 1. p. 287
The Yajurveda mentions the names of Three Thirthankaras - Rishabha, Ajitnath and Arishtanemi.
१५. भवस्य पश्चिमे भागे वामनेन तपः तेनैवतपसाकृष्टः शिव: पद्मासन: समासीनः नेमिनाथः शिवोऽथैवं नाम कलिकाले महाघोरे दर्शनात् स्पर्शनादेव
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कृतम् ।
प्रत्यक्षतां गतः ॥ श्याममूर्ति दिगम्बरः । चक्रेऽस्य वामन ॥ सर्वपापप्रणाशकः ।
कोटियज्ञफलप्रदः ॥
- स्कंदपुराण, प्रभास खण्ड
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