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________________ अरिष्टनेमिः पूर्वभव __ ५७ एकदिन श्रीचन्द्र राजा ने सुप्रतिष्ठित को राज्य देकर सुमन्दिर मुनि के पास दीक्षा ग्रहण की। एक समय कार्तिकपूर्णिमा की रात में राजा सूप्रतिष्ठित अपनी पत्नियों के साथ राजमहल की छत पर बैठा हआ आनन्द क्रीडा कर रहा था । आकाश में उमड़-घुमड़कर घटाए छा रही थीं, बिजलियां चमक रही थीं। इस दृश्य को देखकर राजा विचारने लगा-“कि राजलक्ष्मी भी बिजली की तरह ही चंचल हैं, क्षणभंगुर है। मन में विरक्ति हुई, चार सहस्र राजादि के साथ सुमन्दिर गुरु के पास उसने प्रव्रज्या ग्रहण की। अंग और पूर्वो का अध्ययन किया। सर्वतोभद्र से लेकर सिंहनिष्क्रीडित आदि उत्कृष्ट तप को आराधना की।७१ सोलह कारण भावनाओं से तीर्थंकर नाम कर्म का बंध किया।३२ एक मास का अनशन कर आयु पूर्ण किया ।33 (८) अपराजित : - त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र के अनुसार शंख राजा का जीव अपराजित नामक अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुआ ।३४ यशोमती आदि चारों जीव भी वहीं पर पैदा हुए।३५ - आचार्य जिनसेन के अनुसार सुप्रतिष्ठित का जीव जयन्त नामक अनुत्तर विमान में बावीस सागर की स्थिति वाला अहमिन्द्रदेव बना। ३०. चतुःसहस्रसंख्याताः सहस्रकिरणौजसः । प्रातिष्ठन्त तपस्युग्रे सुप्रतिष्ठेन पार्थिवाः ।। -हरिवंशपुराण ३४।४६ से ४८ ३१. हरिवंशपुराण ३४१४६-५० ३२. हरिवंशपुराण ३४, श्लो० १३१ से १४६ पृ० ४४५-४६ ३३. हरिवंशपुराण ३४।१५०, पृ० ४४७ ३४. त्रिषष्टि० ८।११५३४, पृ० १६ ३५. त्रिषष्टि० ८।१।५३५, ३६. त्रैलोक्यासनकम्पशक्तसुबृहत्पुण्यप्रकृत्यात्मका: । प्रत्याख्याय स सुप्रतिष्ठसुमुनिर्भक्तं ततो मासिकम् ।। आराध्याथ चतुर्विधां बुधनुतामाराधनां शुद्धधीः । त्रिंशज्जलधिस्थिति: पुरुसुखं स्वर्ग जयन्तं श्रितः ।। -हरिवंशपुराण ३४।१५०, पृ० ४४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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