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________________ भगवान औरष्टनीम और श्रीकृष्ण ८ अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग। ह निर्मल सम्यग् दर्शन । १० विनय । ११ षड् आवश्यक का विधिवत् समाचरण । १२ ब्रह्मचर्य का निरतिचार पालन । १३ ध्यान । १४ तपश्चर्या । १५ पात्र-दान । १६ वैयावृत्ति। १७ समाधि। १८ अपूर्व ज्ञानाभ्यास १६ श्रुत-भक्ति। २० प्रवचन-प्रभावना शंखमुनि ने इनकी आराधना कर तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन किया । अन्त में पादपोपगमन संथारा कर समाधिपूर्वक आयु पूर्ण किया ।२८ दिगम्बर आचार्य जिनसेन के अनसार अपराजित का जीव अच्युत स्वर्ग से च्यवन कर नागपुर में श्रीचन्द राजा और श्रीमती का पुत्र सुप्रतिष्ठित हुआ।२९ २७. इमेहि य णं वीसाएहि य कारणेहिं आसेवियबहुली कएहि तित्थयरनामगोयं कम्मं निव्वत्तिसु तं जहाअरहंत सिद्ध पवयण गुरु थेर बहुस्सुए तवस्सीसु। वच्छल्लया य तेसिं अभिक्खणाणोवओगे य । दसण विणय आवस्सए य सीलव्वए णिरइयारं । खणलव तव च्चियाए वेयावच्चे समाही य ।। अपुटवणाणगहणे सुयभत्ती पवयणे पभावणया । एएहिं कारणेहिं तित्थयरत्त लहइ जीओ ॥ —ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र अ० ८ सू० ७० २८. त्रिषष्टि ० ८।११५३४ २६. च्युत्वा गजपुरे जज़ जिनेन्द्रमतभावितः । श्रीचन्द्रश्रीमतीसूनुः सुप्रतिष्ठः प्रतिष्ठितः ।। -हरिवंशपुराण ३४।४३, पृ० ४२२ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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