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________________ ५२ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण एक दिन सीमा-प्रान्त पर रहने वाले व्यक्तियों ने राजा श्रीषण से प्रार्थना की-राजन् ! चन्द्र नामक पर्वत की गुफा में रहने वाला समरकेतु पल्लीपति हमें त्रास देता है । हमारे धन-माल को लूटता है। हमारी रक्षा करो।१२.. सेना से सुसज्जित होकर राजा उसे पकड़ने के लिए जाने लगा। तब शंख कुमार ने कहा-पिता जी ! मैं जाऊंगा और उसे पकड़कर आपके श्री चरणों में लाऊंगा। राजा ने शंख की बात स्वीकार की। ___ 'शंख कुमार मुझे पकड़ने के लिए आ रहा है', जब यह समाचार पल्लीपति ने जाना तब वह दुर्ग से बाहर निकल गया। शंख ने भी अपनी कछ सेना दुर्ग में भेज दी और स्वयं बाहर झाड़ियों में छिप गया। पल्लीपति ने बाहर के दुर्ग को ज्यों ही घेरा त्यों ही शंख ने झाड़ियों में से निकल कर उसे पकड़ लिया। पल्लीपति ने सारा धन शंख के चरणों में रखा। १३ पल्लीपति को पकड़कर शंख राजधानो की ओर प्रस्तिथ हुआ। रास्ते में विश्राम के लिए एक स्थान पर डेरा डाला। अर्धरात्रि का समय था। शखकुमार को नींद नहीं आ रही थी। वह इधर-से उधर करवट बदल रहा था। उसी समय जंगल में से एक नारी का करुण-क्रन्दन सुनाई दिया । शंख जिस दिशा से रुदन की आवाज आ रही थी उधर तलवार लेकर चल पड़ा । शंख ने देखा- एक अधेड़ वय की स्त्री की आँखों से अश्र की धारा बरस रही है, उसने उसे आश्वस्त कर पूछा-बताओ तुम्हारे रोने का कारण क्या है ?१४ ११. मतिप्रभो नाम गुणनिधिः श्रीषेणमंत्रिणः । सूतोऽभूद्विमलबोधजीवः प्रच्युत आरणान् ।। -त्रिषष्टि० ८।१।४५६ १२. त्रिषष्टि० ८।१।४६२-४६४ १३. त्रिषष्टि० ८।११४७५ १४. ददर्श चान रुदतीं महिलामर्धवार्द्धकाम् । ऊचे च मृदु मा रोदी ब्रू हि दुःखस्य कारणम् ।। -त्रिषष्टि० ८।२४७८, ४८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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