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अरिष्टनेमिः पूर्वभव - शंख की मधुर वाणी और शारीरिक दिव्य तेज से वह नारी आश्वस्त हुई। उसने अपनी कहानी इस प्रकार कही:
अंगदेश की चम्पानगरी में जितारि राजा है। उसकी रानी का नाम कीर्तिमती है । उसके अनेक पुत्रों के पश्चात् एक पुत्री हुई, जिसका नाम यशोमती रखा गया। यशोमती रूप और गूण से सम्पन्न है। मैं उसकी धाय माता है। उसने जब से शंखकमार की वीरता, धीरता व रूप सौन्दर्य की प्रशंसा सुनी है तब से वह उसमें अनुरक्त है। उसने यह प्रतिज्ञा ग्रहण की है कि शंखकूमार के अतिरिक्त मैं किसी भी व्यक्ति के साथ विवाह न करूगी। १५ उसके पिता राजा जितारि ने भी शंखकूमार के लिए श्रीषण राजा के पास सम्बन्ध निश्चित करने के लिए अपने व्यक्ति भेजे । उधर विद्याधर मणिशेखर ने जितारि राजा से यशोमती की याचना की। राजा ने मणिशेखर को स्पष्ट इन्कार करते हुए कहा-मेरी पुत्री शंखकुमार के अतिरिक्त किसी को भी नहीं चाहती है। यह सुनते ही मणिशेखर विद्याधर कुपित हुआ। उसने यशोमती का अपहरण किया। मैं यशोमती की धायमाता हैं। आज तक मैं उसके साथ रही हैं। मैं यशोमती से ऐसी चिपट गई कि वह मुझे भी यहाँ तक घसीट कर ले आया। मुझे यहाँ बलात् छोड़कर वह जंगल में भग गया है। अब मेरी प्यारी पुत्री यशोमती का क्या होगा, यह चिन्ता मुझे सता रही है, इसीलिए मैं रो रही हूं। ___ शंखकुमार ने कहा-माता, घबरा मत । मैं उसकी खोज में जाता हूँ । जहाँ कहीं पर भी वह होगा, उसे पकड़कर ले आता हूँ। ऐसा आश्वासन देकर शंख आगे बढ़ा।
सूर्य उदय हो चुका था। पहाड़ की एक गुफा में यशोमती के साथ किसी युवक को उसने देखा । युवक उससे प्रार्थना कर रहा था किन्तु वह स्पष्ट इन्कार कर रही थी। कह रही थी कि मैं शंखकुमार के अतिरिक्त किसी का भी वरण नहीं करूगी ।१८ इसी समय शंखकुमार दिखलाई दिया।
१५. त्रिषष्टि० ८.११४८४ १६. त्रिषष्टि० ८।१४४८५ से ४८८ १७. त्रिषष्टि० ८।११४८६
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