________________
अरिष्टनेमिः पूर्वभव ... तुम्हारी उम्र केवल एक मास शेष रह गई है, एतदर्थ धार्मिक साधना आराधना कर जीवन को सुधारो।' इस प्रकार उद्बोधन देकर मुनि वहाँ से प्रस्थित हो गये।
राजा अपराजित ने प्रीतिकर नामक पुत्र को राज्य देकर बावोस दिन का प्रायोपगमन (पादोपगमन) संथारा कर आयु पूर्ण किया। (६) आरण्य :
सभी वहाँ से आयु पूर्ण कर ग्यारहवें आरण देवलोक में इन्द्र के सामान्य देव बने।
दिगम्बर आचार्य जिनसेन व शुभचन्द्र के अनुसार अच्युत स्वर्ग में बावीससागर की स्थिति वाले देव बने । (७) शंख :
वहाँ से अपराजित का जीव आयुपूर्ण कर हस्तिनापुर में श्रीषण राजा की महारानी श्रीमती की कुक्षि में उत्पन्न होता है। जन्म लेने पर उसका नाम शंख रखा गया। विमलबोध मंत्री का जीव भी आरण देवलोक से च्युत होकर गुणनिधि मंत्री का पुत्र मतिप्रभ हुआ। दोनों का परस्पर पूर्ववत् ही प्रेम हुआ।१ ।
६. आयुर्मासावशेषं ते साम्प्रतं पथ्यमात्मनः । क्रियतामिति तावुक्त्वा तमापृच्छ्य गतौ यती॥
-हरिवंशपुराण ३४।३६, पृ० ४२२ ७. हरिवंशपुराण ३४।४१-४२, पृ० ४२२ ८. ते सर्वेऽपि तपस्तप्त्वा मृत्वा कल्पेऽयुरारणे । इन्द्रसामानिकाः प्रीतिभाजोऽभूवन परस्परम् ॥
-त्रिषष्टि० ८।११४५१ ६. (क) स द्वाविंशत्यहोरात्रो प्रायोपगमनाञ्चितौ । आराध्यापाच्युतेन्द्रत्वं द्वाविंशत्यब्धिजीवितः ।।
-हरिवंश० ३४।४२ (ख) पाण्डवपुराण पर्व २५, श्लोक १५२, पृ० ५१० १०. (क) त्रिषष्टि० ८।११४५२-४५७
(ख) भव-भावना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org